उत्तर प्रदेशस्वास्थ्य/ शिक्षा

पैगाम-ए-मुहब्बत

पैगाम-ए-मुहब्बत

 

 

रचनाकार- राम अनमोल दूबे अनमोल

*पैगाम-ए-मुहब्बत*

मेरी मुहब्बत को युँ रूसवा न करो।

जुदाई के गमों को सबसे छुपाया करो।

गमऔर भी दिये होगे जमाने ने तुझको

उन गमों के पीछे, मेरे गमों को छुपाया करो।

पूंछे कोई हाल तेरे दिल ए नाचीज का,

आँखों में रोक अश्कों को मुस्कराया करो।

छेड़ते जरूर होगें दोस्त तेरे बेवफा कहके मुझे,

भूल कर मेरा नाम अब ओठों पे लाया न करो।

कुछ जमाने की दबिश थी कुछ थी मजबूरियॉ,

तुम हरवक्त याद करके मुझे रुलाया न करो।

कहीं गिर न जायें ये आंसू सामने किसी गैर के,

ढकी तुपी इज्जत को गफलत में जाया न करो।

जी लिये संग वो लम्हें जो हमारी नसीब थे,

करके याद हसीनलम्हों को दिल दुखाया न करो।

नाम दूसरे के हो गयी अब बची जिन्दगी,

इस तरह मुझपे अपना हक अब जताया न करो।

 

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