स्वास्थ्य/ शिक्षा

आखिर पेड़ कटाते क्यों हैं

आखिर पेड़ कटाते क्यों हैं

गौड़ की आवाज संवाद

 

*आखिर पेड़ कटाते क्यों हैं*

 

सांसों की संख्या सब अपनी,

क्रमशः नित्य घटाते क्यों हैं?

आखिर पेड़ कटाते क्यों हैं?

पथिक राह पर जब चलते हैं,

पाँव धूप में जब जलते हैं,

आतप से आकुल होने पर,

थक कर कुछ व्याकुल होने पर,

तरु की शीतल सघन छाँव में,

कुछ पल को रुक जाते क्यों हैं?

आखिर पेड़ कटाते क्यों हैं?

कभी काट कर घर बनवाते,

कभी उसी से चिता सजाते,

कभी जरूरत पड़ी हवा की,

कभी जरूरत पड़ी दवा की,

उनके आगे कभी फलों के,

लिए हाथ फैलाते क्यों हैं?

आखिर पेड़ कटाते क्यों हैं?

कहीं बाढ़ में सब गल जाये,

सूखा कहीं फसल जल जाए,

कभी शरद ऋतु हाड़ कँपाती,

कभी ग्रीष्म आकर झुलसाती,

कौन कर्म फल भुगतेगा यह,

हाय-हाय चिल्लाते क्यों हैं?

आखिर पेड़ कटाते क्यों हैं?

*रचनाकार -अनिल कुमार वर्मा ‘मधुर’*

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