दाखिल खारिज अपील और भूमि विवाद निराकरण के समय से निष्पादन ना होने का जिम्मेदार कौन
दाखिल खारिज अपील और भूमि विवाद निराकरण के समय से निष्पादन ना होने का जिम्मेदार कौन

गौड़ की आवाज, ब्यूरो प्रमुख कैमूर, बिहार। जमीन खरीदने, बदलैन करने, आपसी सहमति बटवारा करने या दान देने के बाद के बाद दाखिल खारिज की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है ताकि जमीन से विक्रेता का नाम हटाकर क्रेता का नाम जोड़ा जा सके, बदलैन करने वाले कागज में अपने बदली हुई भूमि पर आ जाएं तो बंटवारे में हिस्से में मिली भूमि का कागजात दुरुस्त हो जाए, दानी के नाम की जगह दान लेने वाले के नाम सरकारी दस्तावेज में चढ़ जाएं। इस प्रक्रिया के तहत अंचल कार्यालय में ऑनलाइन म्यूटेशन करने का प्रावधान है लेकिन नियम संगत कागजात न लगाने या आपत्ति होने पर अस्वीकृत हुए दाखिल खारिज पर अपील करने का भी प्रावधान है। भूमि सुधार उपसमाहर्ता के यहां अपील करने पर प्रावधानों के तहत 90 दिनों में अपील का निष्पादन करना है। लेकिन मोहनियां भूमि सुधार उपसमाहर्ता के कार्यालय में तीन महीने में निष्पादन होने वाला अपील वाद एक साल से निष्पादन की बाट जोह रहा है। हालांकि अपील में अधिवक्ता या स्वयं के माध्यम से अपना पक्ष रखना होता है जिसमें द्वितीय पक्ष को भी पार्टी बनकर उनकी दलीलों को सुनकर अपील का निष्पादन किया जाता है। इस बारे में अनुमंडलीय व्यवहार न्यायालय मोहनियां के अधिवक्ता राजवंश सिंह ने बताया कि प्रशासनिक कार्यों में अधिकारी के लगने के कारण, नियमित कोर्ट न होने, कभी पक्षकार के तैयार न रहने या वादी प्रतिवादी के न रहने पर भी कोर्ट सफर करता है। लेकिन बहस के बाद जजमेंट कभी समय पर नहीं होता है जजमेंट में दो से चार महीने का समय लग जाता है। बहस के बाद जब जजमेंट होता भी है तो बहस की तिथि के एक सप्ताह बाद की तिथि दे दी जाती है जिस कारण अपील जाने में भी परेशानी होती है। अधिवक्ता अरुण कुमार सिंह ने बताया कि केस दर्ज कर अपीलार्थी के नहीं आने पर डिस्पोजल का प्रावधान है वही उत्तर वादी के अनुपस्थित रहने पर एक पक्षीय फैसला का भी प्रावधान है बहस के बाद जजमेंट में दो से चार महीने विलंब से आदेश होता है पर आदेश तिथि बहस के बाद के एक सप्ताह अंतराल पर बैक डेट में आदेश जारी कर दिया जाता है। अनुमंडल कार्यालय मोहनियां में दाखिल खारिज अपीलवाद लंबित रहने का यह कारण भी महत्वपूर्ण है। नाम नहीं बताने की शर्त पर एक अधिवक्ता ने यह भी बताया कि अनुमंडलीय व्यवहार न्यायालय में एक साल से अधिक समय तक के केस भी पेंडिंग है। भूमि विवाद निराकरण के तहत सीमा विवाद, अतिक्रमण, भूखंड विभाजन या बेदखली के मामले सहित रैयती जमीन के विवादों पर वाद दायर करने पर 90 दिन के अंदर निर्णय देने का प्रावधान है। लेकिन कभी भी एक्ट के अनुरूप समय सीमा में निष्पादन नहीं होने की जानकारी भी अधिवक्ता के माध्यम से दी गई। इस विषय पर डीसीएलआर मोहनियां कमलाकांत त्रिवेदी ने बताया कि वर्तमान में दाखिल खारिज अपील के करीब 970 मामले पेंडिंग है भूमि विवाद निराकरण से संबंधित मामले 30 के आसपास है। एग्जैक्ट डाटा की जानकारी कार्यालय से प्राप्त की जा सकती है। इसमें ऑनलाइन आवेदन होने की वजह से लगातार आवेदनों की संख्या बढ़ रही है जबकि अक्टूबर और नवंबर महीने में चुनावी ड्यूटी के कारण न्यायालय कार्य प्रभावित हुआ। दाखिल खारिज अपील मामले में दो या तीन डेट में मेरी तरफ से निष्पादन हो जाता है लेकिन दोनों पक्ष की उपस्थिति नहीं होने या फिर अधिवक्ता के माध्यम से तैयार नहीं होने का हवाला देकर समय मांगना भी विलंब का कारण है।