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आजादी के बाद से ही मनाया जा रहा है पालीवाल भवन पर गणेश उत्सव

मशाल की रोशनी से आधुनिक लाइटिंग तक गणेश उत्सव का सफर

गौड़ की आवाज ब्यूरो प्रमुख पूजा राठौर कराहल के पालीवाल भवन पर 76 वर्षों से मनाया जा रहा है गणेश उत्सववनांचल क्षेत्र के मुख्यालय कस्बा करहल में गणेश उत्सव की परंपरा बहुत पुरानी है जिसका निर्वाहन पालीवाल परिवार आज भी कर रहा है पुराने समय में ना तो बिजली की व्यवस्था थी ना ही कोई संसाधन लेकिन श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाए जाने वाले गणेश उत्सव में जंगल के फूल पत्ते कागज पन्नी लकड़ी के स्तंभ इत्यादि से दरबार सजाकर मिट्टी के गणपति तैयार कर उन पर सिंदूर चढ़ाकर मूर्ति का निर्माण किया जाता था भजन गायक ढोलक मंजरो की थाप पर पूरी रात जागरण करते विद्युत विहीन दौर में मशाल की रोशनी ही उजाले का सहारा थी समय के साथ मिट्टी के तेल के पेट्रोमैक्स दरबार को प्रकाशित करने लगे इन्हीं की रोशनी में स्थानीय कलाकार धार्मिक प्रसंग पर नाटकों का मंचन भी किया करते थे आजादी के बाद स्वर्गीय श्री बद्री प्रसाद पालीवाल ने अपने बाल शखाओ को साथ में लेकर गणेश उत्सव मनाए जाने की शुरुआत की थी बच्चों का उत्साह देखकर उस समय के बुद्धिजीवियों ने विचार रखा की गणपति जी की आरती की रचना भी स्थानीय स्तर पर ही होनी चाहिए इसकी जिम्मेदारी रचनात्मक रुचि रखने वाले लोगों को दी गई आरती की रचना के पश्चात रचनाकारों ने सभी को आरती गाकर सुनाई तो पूरा वातावरण जय जय श्री गणपति गणराज मंगल मोद बढ़ाने वाले की ध्वनि से गूंजायमान हो उठा और यह आरती पालीवाल भवन गणेश दरबार में पूरे भाव से गाई जाने लगी संपूर्ण कराहल क्षेत्र के अलावा बहुत सी जगह भी यह आरती गाई जाती है पुराने समय से आज तक 76 वर्षों के सफर में कई उतार-चढ़ाव के बावजूद भी कराहल क्षेत्र के सबसे पुराने प्रथम गणेश उत्सव मनाए जाने की परंपरा का निर्वाहन पालीवाल परिवार पूरे श्रद्धा भाव से कर रहा है जिसमें भव्य गणेश दरबार प्रतिदिन भजन जागरण नव दिवसीय अखंड रामायण पाठ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं

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