उत्तर प्रदेश

खूब तरक्की बेटों ने की बूढी माँ कहकर रोती है : पुष्कर सुल्तानपुरी

गुरुकुल आश्रम के स्थापना दिवस पर आयोजित हुआ कवि सम्मेलन

गौड़ की आवाज संवाद बल्दीराय,सुलतानपुर।बल्दीराय तहसील क्षेत्र के वेद वेदांग विद्यापीठ गुरुकुल आश्रम धनपतगंज का अठ्ठारंहवा स्थापना दिवस बड़ी ही धूमधाम से मनाया गया।आश्रम में विगत एक नवंबर से ही ब्रहमचारी बच्चों द्वारा यज्ञशाला में लगातार वेद मंत्रो से आहुतियां डालीं।आश्रम के विशाल प्रांगण में स्थापना दिवस पर पांच दिवसीय कार्यक्रमों की धूम रही।प्रांगण में अखिल भारतीय विराट कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया गया।

जिसमे दूर-दूर से आये साहित्यकारों,मां सरस्वती के पुत्रों, कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया।कार्यक्रम की अध्यक्षता क्षेत्र के समाजसेवी राम अकबाल द्विवेदी तथा संचालन कवि हरि बहादुर सिंह हर्ष ने किया।कवि सम्मेलन की शुरुआत श्री द्विवेदी ने माँ सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित करके किया।अयोध्या से आए प्रख्यात साहित्यकार कवि कर्मराज शर्मा तुकान्त ने माँ की बंदना माई आवा मोरी रसना पे रस भरि जा,सुनाकर कार्यक्रम की शुरुआत किया।वही प्रतापगढ से पधारे ओज विधा के चर्चित कवि हरिबहादुर हर्ष ने देश पर अपनी चार लाईन प्रस्तुत करके उपस्थित श्रोताओ में जोश भर दिया।उन्होंने पढा-घर-घर से अफजल निकलेंगे तो हम क्या चुप रहेंगें।हम राणा के बंशज है घर में घुस कर मारेंगे।कार्यक्रम में आये युवा कवि पीयूष प्रखर ने अपनी पंक्तिया कुछ इस प्रकार पढ़ी-नफरत का दौर है न सियासत का दौर है,गर सच कहूँ तो बात यहां कोई और है।दुनिया के सारे लोग नजरिया सही करें,ये हिन्द अब भी दुनिया का सिरमौर है। कवि पुष्कर सुलतानपुरी ने अपनी पंक्तियां इस प्रकार पढ़ीं-ऐसा कुछ इंतजाम हो जाए।उम्र बस उसके नाम हो जाए।इक नजर फेर ले जो हम पर तो।हम गरीबों का काम हो जाए।मां की बंदना के पश्चात कवि कर्मराज शर्मा तुकान्त ने अपनी चार पंक्तिया इस प्रकार पढ़ीं-घर को लुटता देखती जो वह शरीयत क्या करें?और बुरा ही सोचती जो ऐसी नीयत क्या करें।भेद लेने के लिए ही साथ जो आया सदा।इस तरह के आदमी की आदमीयत क्या करें?इसके अलावा श्रोताओं की मांग पर आधुनिक विकास पर घर से दूर हो रहे परिवेश पर कविता-खूब तरक्की बेटों ने की बूढ़ी मां कहकर रोती है।हर परिचित से कहती फिरती,रो-रोकर धीरज खोती है।क्या मन को समझा पाएगी दुनिया से मरहम पाकर।चार चार बेटौना की अम्मा,सो जाती है गम खाकर।पढ़कर वाहवाही लूटी।श्रोतागण कवियों की मधुर वाणी के माध्यम से ओज श्रृंगार भक्ति राष्ट्रगीत आदि विधाओं की कविताओं पर झूमते रहे।इस अवसर पर कवि कुलदीप पाडे मंयक, युवा कवियत्री मानसी पांडेय, दुर्गेश दुर्लभ आदि कवियों ने अपनी-अपनी रचनाऐं पढ़ी।

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